Kabhie Maikhane Tak Songtext
von Pankaj Udhas
Kabhie Maikhane Tak Songtext
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
हम ऐसे रिंद जो अक्सर महीनों तक नहीं पीते (बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!)
हम ऐसे रिंद जो अक्सर महीनों तक नहीं पीते
अगर पीने पे आ जाएँ तो...
अगर पीने पे आ जाएँ तो फ़िर पैहम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
कोई अपनी तरह मय-ख़ाने में पीकर तो दिखलाए (क्या बात है! वाह-वाह! क्या बात है! वाह!)
कोई अपनी तरह मय-ख़ाने में पीकर तो दिखलाए
के हम मय ही नहीं पीते हैं...
के हम मय ही नहीं पीते हैं, अश्क-ए-ग़म भी पीते हैं (वाह! वाह! बहुत खूब! बहुत खूब)
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं (वाह! वाह!)
हमारी प्यास का सबसे अलग अंदाज़ है, Rashid
हमारी प्यास का सबसे अलग अंदाज़ है, Rashid
कभी दरिया को ठुकराते हैं...
कभी दरिया को ठुकराते हैं, कभी शबनम भी पीते हैं (वाह! वाह! क्या बात है! सलाम मालिक)
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
हम ऐसे रिंद जो अक्सर महीनों तक नहीं पीते (बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!)
हम ऐसे रिंद जो अक्सर महीनों तक नहीं पीते
अगर पीने पे आ जाएँ तो...
अगर पीने पे आ जाएँ तो फ़िर पैहम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
कोई अपनी तरह मय-ख़ाने में पीकर तो दिखलाए (क्या बात है! वाह-वाह! क्या बात है! वाह!)
कोई अपनी तरह मय-ख़ाने में पीकर तो दिखलाए
के हम मय ही नहीं पीते हैं...
के हम मय ही नहीं पीते हैं, अश्क-ए-ग़म भी पीते हैं (वाह! वाह! बहुत खूब! बहुत खूब)
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं (वाह! वाह!)
हमारी प्यास का सबसे अलग अंदाज़ है, Rashid
हमारी प्यास का सबसे अलग अंदाज़ है, Rashid
कभी दरिया को ठुकराते हैं...
कभी दरिया को ठुकराते हैं, कभी शबनम भी पीते हैं (वाह! वाह! क्या बात है! सलाम मालिक)
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
घटा ज़ुल्फ़ों की छा जाए तो
बे-मौसम भी पीते हैं
कभी मय-ख़ाने तक जाते हैं हम
और कम भी पीते हैं
Writer(s): Mumtaz Rashid, Pankaj Udhas Lyrics powered by www.musixmatch.com