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Na Kisi Ki Aankh Ka Noor Hoon Songtext
von Mohammed Rafi

Na Kisi Ki Aankh Ka Noor Hoon Songtext

ना किसी की आँख का नूर हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ
ना किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम ना आ सके
मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ

ना तो मैं किसी का हबीब हूँ
ना तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ


जो उजड़ गया वो दयार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ

मेरा रंग-रूप बिगड़ गया
मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ाँ से उजड़ गया

मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ

पए-फ़ातेहा कोई आए क्यूँ?
कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ?
कोई आ के शम्मा जलाए क्यूँ?

मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ

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