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Din kuch aise guzarta hai koi Songtext
von Jagjit Singh

Din kuch aise guzarta hai koi Songtext

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

आईना देखकर तसल्ली हुई
आईना देखकर तसल्ली हुई

हमको इस घर में जानता है कोई
हमको इस घर में जानता है कोई
हमको इस घर में जानता है कोई
हमको इस घर में जानता है कोई

पक गया है शहर पे फल शायद
पक गया है शहर पे फल शायद


फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर से पत्थर उछालता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

तुम्हारे ग़म की डली उठाकर
ज़बाँ पे रख ली है देखो मैंने
ये क़तरा-क़तरा पिघल रही है
मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ

देर से गूँजते हैं सन्नाटे
देर से गूँजते हैं सन्नाटे

जैसे हमको पुकारता है कोई
जैसे हमको पुकारता है कोई
जैसे हमको पुकारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई

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