Sham Songtext
von Amit Trivedi
Sham Songtext
शाम भी कोई जैसे है नदी
लहर-लहर जैसे बह रही है
कोई अनकही, कोई अनसुनी
बात धीमे-धीमे कह रही है
कहीं ना कहीं जागी हुई है कोई आरज़ू
कहीं ना कहीं खोए हुए से हैं मैं और तू
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
सुहानी-सुहानी है ये कहानी
जो ख़ामोशी सुनाती है
"जिसे तुने चाहा होगा वो तेरा"
मुझे वो ये बताती है
मैं मगन हूँ, पर ना जानूँ, कब आने वाला है वो पल
जब हौले-हौले, धीरे-धीरे खिलेगा दिल का ये कँवल
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
ये कैसा समय है, कैसा समाँ है
के शाम है पिघल रही
ये सब कुछ हसीं है, सब कुछ जवाँ है
है ज़िंदगी मचल रही
जगमगाती, झिलमिलाती पलक-पलक पे ख़्वाब है
सुन, ये हवाएँ गुनगुनाएँ, जो गीत ला-जवाब है
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
लहर-लहर जैसे बह रही है
कोई अनकही, कोई अनसुनी
बात धीमे-धीमे कह रही है
कहीं ना कहीं जागी हुई है कोई आरज़ू
कहीं ना कहीं खोए हुए से हैं मैं और तू
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
सुहानी-सुहानी है ये कहानी
जो ख़ामोशी सुनाती है
"जिसे तुने चाहा होगा वो तेरा"
मुझे वो ये बताती है
मैं मगन हूँ, पर ना जानूँ, कब आने वाला है वो पल
जब हौले-हौले, धीरे-धीरे खिलेगा दिल का ये कँवल
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
ये कैसा समय है, कैसा समाँ है
के शाम है पिघल रही
ये सब कुछ हसीं है, सब कुछ जवाँ है
है ज़िंदगी मचल रही
जगमगाती, झिलमिलाती पलक-पलक पे ख़्वाब है
सुन, ये हवाएँ गुनगुनाएँ, जो गीत ला-जवाब है
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं ख़ामोश दोनों
के बूम-बूम-बूम-पारा, पारा
हैं मदहोश दोनों
जो गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
जो कहती-सुनती है ये निगाहें
गुमसुम-गुमसुम है ये फ़िज़ाएँ
है ना?
Writer(s): Javed Akhtar, Amit Trivedi Lyrics powered by www.musixmatch.com