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Qaafir Songtext
von RJ Khan

Qaafir Songtext

हम्म-हम्म-मौला

बरसे तेरी रेहमत (बरसे तेरी रेहमत)
चलता जा कुछ कह मत (चलता जा कुछ कह मत)
क्या मेरा ख़ुदा मेरे साथ? (है मेरा ख़ुदा मेरे साथ)
क्या मेरी भी सुनते एहमद? (या रसूल अल्लाह)

तेरे दर पे आया है काफ़िर
जिसको ना हुआ कुछ भी हासिल
बनना चाहता वो है क़ाबिल
कर ले खुद में मुझको शामिल

इस भटके हुए को, मौला राह दिखा दे
सारी मुश्किलों से लड़ना तू सीखा दे
ऐसे काफ़िर को भी अपने दर पे पनाह दे
जो ज़िंदगी को, सिर्फ सोच में बीता दे

हाय ख़ुदा! मुझे इस दुनिया से बचा ले
हो सके तो तू मुझे आग़ोश में छुपा ले
जब लगे हों उसके नसीब पे ताले
तो अज़ीज़ वो तेरा, ख़ुद को कैसे संभाले?


कोई होता नही है मुझसे रूबरू
लगता है शोलों के ऊपर हूं
है तुझसे बस एक जुस्तजु
दे इजाज़त मैं कुछ पूछ सकूं

तेरे दर पे आया है काफ़िर
जिसको ना हुआ कुछ भी हासिल
बनना चाहता वो है क़ाबिल
कर ले खुद में मुझको शामिल

तेरे दर पे आया है काफ़िर
जिसको ना हुआ कुछ भी हासिल
बनना चाहता वो है क़ाबिल
कर ले खुद में मुझको शामिल

(हां! परवर दीगारा)

Aye aye!
देख कौन आया तेरे पास
वो बंदा, जो एक तेरी ही बिगड़ी औलाद है
कर रहा जो मिन्नतें, है बोझ लिए दिल पे
सितम कर रहें हालात हैं

वो जो डरा ना कभी भी, साथ चला ना कभी भी
उसके जिस्म का पानी तो, गुनाहों का तालाब है
ख़ाब और रूबाब है सर पे सवार
कोरे काग़ज़ वाली, जिसकी ज़िंदगी की क़िताब है


मौला तेरा ही बनाया, दूसरे को है काट रहा
तेरी क़ायनात का, है क़तरा-क़तरा बांट रहा
अव्वल सबसे ज़्यादा, जो ज़माने की है चाट रहा
सगे भाई के ही पास, भाई का ना साथ रहा

भूल चुके हैं ये पैग़ाम-ए-रसूल
तभी ज़िल्लत वाली ज़िंदगी है इनको क़ुबूल
दूसरों को गिराना, ही है सबका उसूल
मां-बाप को समझते ये, पैरों की धूल

मौला मैं भी ना जाने कैसे, इस भीड़ में था खो गया
ग़लत क्या किया, ये एहसास मुझे हो गया
कबर वाली नींद, क्यूं मुक़द्दर मेरा सो गया?
लकीर का फ़कीर, मैं तो दिल से भी रो गया

मुहर्रम मेरा हो गया, अब ईद मेरी बाक़ी है
हूं देर से उठा मैं, अब ना नींद मेरी बाक़ी है
इस काफ़िर की भी सुनेगा, उम्मीद मेरी बाक़ी है
अब हार से है दोस्ती, तो जीत मेरी बाक़ी है

तेरे दर पे आया है काफ़िर
जिसको ना हुआ कुछ भी हासिल
बनना चाहता वो है क़ाबिल
कर ले खुद में मुझको शामिल

(मौला अली)

हो-ओ-ओ-ओ!
हाज़िरी क़ुबूल मेरी करले, अपने दर पे
ख़ामोश करदे शोर ये, जो मेरे अंदर बरपे
मुझसे पहले झोली, इन बेसाहारों की तू भर दे
मिट जाए ये ग़रीबी, तू मोजीज़ा ऐसा कर दे

तेरे दर पे झोली को, फैलाने वाले आएं
अपनी ग़ुरबत का आलम, सुनाने वाले आएं
औलाद को अपनी, भूखा सुलाने वाले आएं
धक्के खा-खा के दिन भर, कमाने वाले आएं

ज़रूरतमंद मुझसे भी ज़्यादा चुन लेना
उसके बाद मेरी भी सुन लेना

तेरे दर से जा रहा काफ़िर
हो गया उसको सब कुछ हासिल
बन गया है वो सबके क़ाबिल
तू ही तू है उसमे शामिल

(या अली मौला) तेरे दर से जा रहा काफ़िर (सहारा दे...)
(या अली मौला) हो गया उसको सब कुछ हासिल
(या अली मौला) बन गया है वो सबके क़ाबिल (या...)
(या अली मौला) तू ही तू है उसमे शामिल (परवर दीगार)

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