Kabse Hoon Kya Bataon Songtext
von Jagjit Singh & Chitra Singh
Kabse Hoon Kya Bataon Songtext
क़ासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ ′गर हिसाब में
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में
ता फिर ना इंतज़ार में नींद आए उम्र-भर
ता फिर ना इंतज़ार में नींद आए उम्र-भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
ग़ालिब, छुटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
ग़ालिब, छुटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ 'गर हिसाब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ ′गर हिसाब में
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में
ता फिर ना इंतज़ार में नींद आए उम्र-भर
ता फिर ना इंतज़ार में नींद आए उम्र-भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
ग़ालिब, छुटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
ग़ालिब, छुटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
कब से हूँ, क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ 'गर हिसाब में
Writer(s): Mirza Ghalib, Jagjit Singh Lyrics powered by www.musixmatch.com